18-01-94  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

ब्राह्मण जन्म का आदि वरदान - स्नेह की शक्ति

स्नेह की शक्ति के वरदान द्वारा असम्भव को सम्भव बनाने वाले स्नेह के सागर बापदादा बोले-

आज चारों ओर के सर्व बच्चों की स्नेह भरी स्मृतियाँ समर्थ बापदादा के पास स्नेह के सागर समान पहुँच गई। हर एक बच्चे के दिल में दिलाराम समाया बहुत बड़ी शक्ति है।

·       स्नेह की शक्ति मेहनत को सहज कर देती है। जहाँ मोहब्बत है वहाँ मेहनत नहीं होती। मेहनत मनोरंजन बन जाती है। खेल लगता है।

·       स्नेह की शक्ति देह और देह की दुनिया सेकण्ड में भूला देती है। स्नेह में जो भुलाना चाहें वह भुला सकते हैं, जो याद करना चाहें उसमें समा जाते हैं।

·       स्नेह की शक्ति सहज समर्पण करा देती है।

·       स्नेह की शक्ति बाप समान बना देती है।

·       स्नेह सदा हर समय परमात्म साथ का अनुभव कराता है।

·       स्नेह सदा अपने ऊपर बाप की दुआओं का हाथ छत्रछाया समान अनुभव कराता है।

·       स्नेह असम्भव को सम्भव इतना सहज कर देता जैसे कार्य हुआ ही पड़ा है।

·       स्नेह निष्पल (हर समय)निश्चिन्त अनुभव कराता है।

·       स्नेह हर कर्म में निश्चित विजयी स्थिति का अनुभव कराता है। ऐसे स्नेह की शक्ति अनुभव करते हो ना?

बापदादा जानते हैं कि अनेक जन्म अनेक प्रकार की मेहनत कर थकी हुई आत्मायें हैं। भिन्न-भिन्न बन्धनों में बन्धी हुई आत्मायें होने के कारण मेहनत करती रही हैं। इसलिये बापदादा मेहनत से मुक्त होने के लिये सहज विधि ‘स्नेह की शक्ति’ सभी बच्चों को वरदान में देते हैं। अपने ब्राह्मण जीवन के आदि समय को याद करो। तो जन्मते ही सभी को स्नेह की शक्ति ने ही नया जीवन दिया। स्नेह की अनुभूति के लिये मेहनत की? मेहनत करनी पड़ी? सहज अनुभव किया ना। तो यह आदि जन्म की अनुभूति ही वरदान है। प्यार-प्यार में ही खो गये। सदा इस स्नेह के वरदान को स्मृति में रखो। मेहनत के समय इस वरदान द्वारा मेहनत को परिवर्तन कर सकते हो। बापदादा को बच्चों का मेहनत अनुभव करना अच्छा नहीं लगता। स्नेह की शक्ति की विस्मृति मेहनत अनुभव कराती है।

कितनी भी बड़ी कैसी भी परिस्थिति हो प्यार से, स्नेह से परिस्थिति रूपी पहाड़ भी परिवर्तन हो पानी समान हल्का बन सकता है। पत्थर को पानी बना सकते हो। कैसा भी माया का विकराल रूप वा रॉयल रूप सामना करे तो सेकण्ड में स्नेह के सागर में समा जाओ तो सामना करने की माया की शक्ति समाप्त हो जायेगी। आपके समाने की शक्ति छू-मन्त्र नहीं लेकिन शिव-मन्त्र बन जायेगी। सबके पास शिव-मन्त्र की शक्ति है ना कि खो जाती है? शिव स्नेह में समा जाओ, सिर्फ डुबकी मारकर नहीं निकल आओ। थोड़ा समय स्मृति में रहते हो-मीठा बाबा, प्यारा बाबा, तो डुबकी लगाकर फिर निकल आते हो तो माया की नजर पड़ जाती है। समा जाओ, तो माया की नजर से दूर हो जायेंगे। और कुछ भी नहीं आए तो स्नेह की शक्ति जन्म का वरदान है। उस वरदान में खो जाओ। खो जाना नहीं आता है? स्नेह तो सहज है ना! सबको अनुभव है ना!कोई है जिसको ब्राह्मण जीवन में रूहानी स्नेह का अनुभव नहीं हो, है कोई?

·       स्नेह ही सहज योग है, स्नेह में समाना ही सम्पूर्ण ज्ञान है।

·       आज के दिन का महत्व भी स्नेह है।

अमृतवेले से विशेष किस लहर में लहरा रहे हो? बापदादा के स्नेह में ही लहरा रहे हो। सर्व आत्माओं के अन्दर एक बाप के सिवाय और कुछ याद रहा? सहज याद रही ना कि मेहनत करनी पड़ी? तो सहज कैसे बनी? स्नेह के कारण। तो क्या सिर्फ आज का दिन स्नेह का है? संगमयुग है ही परमात्म-स्नेह का युग। तो युग के महत्व को जान स्नेह की अनुभूतियों को अनुभव करो। स्नेह का सागर स्नेह के हीरे-मोतियों की थालियाँ भरकर दे रहे हैं। तो अपने को सदा भरपूर करो। थोड़े से अनुभव में खुश नहीं हो जाओ। सम्पन्न बनो। भविष्य में तो स्थूल हीरे-मोतियों से सजेंगे। ये परमात्म-प्यार के हीरे-मोती अनमोल हैं, तो इससे सदा सजे सजाये रहो।

चारों ओर के बच्चों की याद, स्नेह के गीत बापदादा सदा भी सुनते रहते हैं लेकिन आज विशेष स्नेह स्वरूप बच्चों को स्नेह के रिटर्न में सदा स्नेही भव, सदा स्नेह के वरदान द्वारा सहज उड़ती कला का विशेष फिर से वरदान दे रहे हैं। सदा जैसे छोटे बच्चे होते हैं, कोई भी मुश्किल बात आयेगी वा कोई भी परिस्थिति आयेगी तो मात-पिता की गोदी में समा जायेंगे, ऐसे सेकण्ड में स्नेह की गोदी में समा जाओ तो मेहनत से बच जायेंगे। सेकण्ड में उड़ती कला द्वारा बापदादा के पास पहुँच जाओ तो कैसे भी स्वरूप में आई हुई माया दूर से भी आपको छू नहीं सकेगी। क्योंकि परमात्म-छत्रछाया के अन्दर तो क्या लेकिन दूर से भी माया की छाया आ नहीं सकती। तो बच्चा बनना अर्थात् माया से बचना। बच्चा बनना तो अच्छा है ना। बच्चा बनने का अर्थ ही है स्नेह में समा जाना। अच्छा!

चारों ओर के दिलाराम के दिल में समाये हुए बच्चों को, सदा मेहनत को मोहब्बत में परिवर्तन करने वाली शक्तिशाली आत्माओं को, सदा परमात्म-स्नेह के संगमयुग को महान अनुभव करने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा स्नेह की शक्ति से बाप के साथ और दुआओं के हाथ को अनुभव कर औरों को भी कराने वाली विशेष आत्माओं को, सदा स्नेह के सागर में समाये हुए समान बच्चों को स्नेह के सागर बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

दादियों से मुलाकात: -

आज के दिन क्या-वÌया याद आया? विशेष विल पॉवर के हाथ याद आये?विल पॉवर सब कार्य सहज करा देती है। ब्रह्मा बाप ज्यादा याद आया या बाप-दादा दोनों याद रहे? फिर भी ब्रह्मा बाप की याद के चरित्र सभी को विशेष याद आते रहे। ब्रह्मा बाप ब्रह्मा बना ही तब जब बाप-दादा कम्बाइन्ड हुए। परमात्म-प्रवेशता के साथ ही ब्रह्मा का कर्तव्य शुरू हुआ। इस अव्यक्त स्वरूप के अव्यक्त रूप के चरित्र भी न्यारे और प्यारे हैं। 25 वर्ष की सेवा की हिस्ट्री आदि से याद करो-कितनी तीव्र गति की हिस्ट्री है। अव्यक्त होना अर्थात् तीव्र गति से सर्व कार्य होना। समय का परिवर्तन भी फास्ट और सेवा की वृद्धि की गति भी फास्ट। फास्ट हुई है ना? इसलिये अव्यक्त होने से समय को भी तीव्र गति मिली है तो सेवा को भी तीव्र गति मिली है। अव्यक्त पार्ट में आने वाली आत्माओं को भी पुरूषार्थ में तीव्र गति का भाग्य सहज मिला हुआ है। अव्यक्त पार्ट में आई हुई आत्माओं को लास्ट सो फास्ट, फास्ट सो फर्स्ट का वरदान प्राप्त है। (सभा से)

वरदान को कार्य में लगाओ, सिर्फ स्मृति तक नहीं। समय प्रमाण वरदान को स्वरूप में लाओ। वरदान को स्वरूप में लाने से स्वत: ही फास्ट गति का अनुभव करेंगे। अव्यक्त पालना सहज ही शक्तिशाली बनाने वाली है। इसलिये जितना आगे बढ़ना चाहो, बढ़ सकते हो। बापदादा और निमित्त आत्माओं की आप सबके ऊपर विशेष सदा आगे उड़ने की दुआएं हैं। ऐसे है ना? दादियों की भी दुआएं हैं। सिर्फ फायदा ले लो। मिलता बहुत है, यूज़ कम करते हो। सिर्फ बुद्धि के किनारे रखते नहीं रहो, खाओ, खर्च करो। आता है यूज़ करना, खर्च करना आता है कि सम्भाल कर रखते हो? बहुत अच्छा, बहुत अच्छा-ये सम्भाल कर रखना है। अच्छाई को स्वयं प्रति और दूसरों के प्रति कार्य में लगाओ। यहाँ खर्चना अर्थात् बढ़ाना है। जैसे आजकल का फैशन है ना-जो अमूल्य चीज़ होती है वह कहाँ रखते हैं? (लॉकर में) यूज़ नहीं करते, लॉकर में रखते हुए खुश होते हैं। तो कई बार ऐसे करते हैं-पॉइन्ट बड़ी अच्छी है, विधि बड़ी अच्छी है, सिर्फ बुद्धि के लॉकर में देखकर खुश हो जाते हैं। तो आप सभी लॉकर में रखते हो या यूज़ करते हो? अच्छा!

पाण्डव सेना का क्या हाल है? (अच्छा है) सिर्फ अच्छा-अच्छा कहने वाले तो नहीं ना। ऐसी सेना तैयार हो जो सेकण्ड में जो ऑर्डर मिले कर ले। ऐसे तैयार हैं? शक्ति सेना तैयार है? शक्तियों की सेवा अपनी है, पाण्डवों की सेवा अपनी है। पाण्डवों के सहयोग के बिना भी शक्तियां नहीं चल सकती, शक्तियों के सहयोग के बिना भी पाण्डव नहीं चल सकते।

(दादी जी ने मैक्सिको की कानफ्रेन्स का समाचार बापदादा को सुनाया)

अच्छा है साइन्स वाले तो काम में लगे ही हैं। प्रयोग करने में साइन्स वाले होशियार होते हैं ना। तो एक भी अच्छी तरह से योगी और प्रयोगी बन गया तो बड़े से बड़े माइक का काम करेगा।

(लास एंजिलिस में भूकम्प आया है) ये समय के तीव्र गति की निशानियां समय प्रति समय प्रकृति दिखा रही है। अच्छा!

अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात

ग्रुप नं. 1

फल की इच्छा छोड़ रहमदिल बन शुभ भावना का बीज डालते चलो

बापदादा द्वारा सर्व बच्चों को इस संगमयुग पर विशेष कौन-सा खज़ाना मिला बा हुआ है? खज़ाने तो बहुत हैं लेकिन विशेष खज़ाना खुशी का खज़ाना है। तो खुशी का खज़ाना कितना श्रेष्ठ मिला है। तो यह सदा साथ रहता है या कभी किनारे भी हो जाता है? जब अनगिनत मिलता है तो हर समय खज़ाने को कार्य में लगाना चाहिए ना। लोग किनारे इसीलिए रखते हैं कि आइवेल में काम में आयेगा। लेकिन आपके पास तो अथाह है। इस जन्म की तो बात छोड़ो लेकिन अनेक जन्म यह खुशी का खज़ाना साथ रहेगा। अनगिनत है तो यूज़ करो ना। बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि प्राण चले जायें लेकिन खुशी नहीं जाये। इसलिये खुशी को कभी भी किनारे नहीं रखो और ही महादानी बनो। क्योंकि वर्तमान समय और कुछ भी मिल सकता है लेकिन सच्ची खुशी नहीं मिल सकती। अल्पकाल की खुशी प्राप्त करने के लिये लोग कितना समय वा धन खर्च करते हैं फिर भी सच्ची खुशी नहीं मिलती। तो ऐसे आवश्यकता के समय आप आत्माओं को महादानी बनना है। कैसी भी अशान्त आत्मा, दु:खी आत्मा हो अगर उसको खुशी की अनुभूति करा दो तो कितनी दिल से दुआयें देगी। आप दाता के बच्चे हो तो फ्राकदिली से बांटो। बांटना तो आता है ना? तो क्यों नहीं बांटते हो? समय को देख रहे हो? दिल से रहम आना चाहिये। जो अशान्ति-दु:ख में भटक रहे हैं वो आपका परिवार है ना। परिवार को सहयोग दिया जाता है ना। तो वर्तमान समय महादानी बनने के लिये विशेष रहमदिल के गुण को इमर्ज करो। आपके जड़ चित्र वरदान दे रहे हैं। तो आप भी चैतन्य में रहम दिल बन बांटते जाओ। क्योंकि परवश आत्मायें हैं। कभी भी ये नहीं सोचो कि ये तो सुनने वाले नहीं हैं, ये तो चलने वाले नहीं हैं। नहीं, आप रहमदिल बनो, देते जाओ। गाया हुआ है कि भावना का फल मिलता है। तो चाहे आत्माओं में ज्ञान के प्रति, योग के प्रति शुभ भावना नहीं भी हो लेकिन आपकी शुभ भावना उनको फल दे देती है। ऐसे नहीं सोचो कि इतना कुछ सेवा की लेकिन फल तो मिला ही नहीं। लेकिन फल एक जैसे नहीं होते। कोई सीजन का फल होता है, कोई सदा का फल होता है। तो सीजन का फल सीजन पर ही फल देगा ना। तो आपने शुभ भावना का बीज डाला, अगर सीजन का फल होगा तो सीजन में निकलेगा ही। वैसे भी देखो जो खेती का काम करते हैं, तो जो सीजन पर चीज़ निकलने वाली होती है तो ये नहीं सोचते हैं कि 6 मास के बाद ये निकलेगा इसलिये बीज डालो ही नहीं। तो आप भी बीज डालते चलो। समय पर सर्व आत्माओं को जगना ही है। आपकी रहम भावना, शुभ भावना फल अवश्य देगी। अगर कोई आपोजिशन भी करता है तो भी आपको अपने रहम की भावना छोड़नी नहीं है और ही सोचो कि ये आपोजिशन या इन्सल्ट, गालियां-ये खाद का काम करेंगी। तो खाद पड़ने से अच्छा फल निकलेगा। जितनी गालियां देंगे, उतना आपके गुण गायेंगे। इसलिये हर आत्मा को दाता बन देते जाओ। अच्छा माने तो दें, नहीं। ये तो लेवता हो गये? लेने की इच्छा नहीं रखो कि वो अच्छा बोले, अच्छा माने तो दें। नहीं। इसको कहा जाता है दाता के बच्चे मास्टर दाता। चाहे वृत्ति द्वारा, चाहे वायब्रेशन्स द्वारा, चाहे वाणी द्वारा देते जाओ। इतने भरपूर हो ना? सब खज़ाने हैं?

डबल विदेशियों को देख बापदादा डबल खुश होते हैं क्यों? डबल पुरूषार्थ करते हैं। एक तो अपना रीति-रस्म परिवर्तन करने का भी पुरूषार्थ करते हैं। बापदादा देखते हैं कि उमंग-उत्साह मैजारिटी में अच्छा है। अगर कभी उमंग-उत्साह बीच-बीच में नीचे-ऊपर होता है तो आज विधि सुनाई कि समा जाओ, स्नेह की गोदी में छिप जाओ, फिर माया आयेगी ही नहीं। ये तो सहज है ना। बीज रूप होने में मेहनत है, इसमें मेहनत नहीं है। और कुछ भी नहीं आये लेकिन स्नेह में समाना तो आता है कि ये मुश्किल है? (नहीं) तो ये करो। अभी मुश्किल शब्द नहीं बोलना। नीचे आते हो तो छोटी-सी चीज़ बड़ी लगती है, ऊपर चले जाओ तो बड़ी चीज़ भी छोटी लगेगी। फरिश्ते हो या साधारण मानव हो? (फरिश्ता) फरिश्ता कहाँ रहता है? ऊपर रहता है या नीचे? (ऊपर) तो नीचे क्यों ठहरते हो, अच्छा लगता है? कभी-कभी दिल होती है नीचे आने की? नहीं, फिर क्यों आते हो? बाप का साथ छोड़ते हो तब नीचे आते हो।

तो डबल विदेशियों को डबल पुरूषार्थ का प्रत्यक्ष फल डबल चांस है। इसका फायदा लो। इस वर्ष में क्या करेंगे? डबल सर्विस। महादानी-वरदानी बनेंगे या खुद बाप के आगे कहेंगे शक्ति दे दो औरों को भी शक्तियां दो। अच्छा है, हिम्मत रखने में नम्बर ले लिया। अभी फास्ट पुरूषार्थ कर आगे उड़ते चलो।

ग्रुप नं. 2

एक बल एक भरोसे द्वारा सदा एकरस स्थिति का अनुभव करो

सभी एक बल एक भरोसे का अनुभव करते हो? एक बल, एक भरोसे वाले की निशानी क्या होगी? एक बल, एक भरोसे में रहने वाली आत्मा सदा एक रस स्थिति में स्थित होगी। एकरस स्थिति अर्थात् सदा अचल, हलचल नहीं। तो ऐसे रहते हो कि कभी हलचल, कभी अचल? हलचल के समय एक बल, एक भरोसा कहेंगे या अनेक बल, अनेक भरोसा कहेंगे? जब एक बाप द्वारा सर्वशक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं तो एक बल, एक भरोसा चाहिये ना। एक को भूलते हो तभी हलचल होती है। तो अचल रहने वाले हो ना?

यहाँ आपका यादगार कौन-सा है? अचल घर है या हलचल घर है? या अचल घर कभी हलचल घर हो जाता है! यादगार आपका ही है ना। फिर हलचल में क्यों आते हो? प्रैक्टिकल का ही यादगार बना है ना। तो सदा ये याद करो कि एक बल एक भरोसे में रहने वाले हैं। क्योंकि भक्ति में अनेक के ऊपर भरोसा रखकरके अनुभव कर लिया ना तो क्या मिला? सब कुछ गंवा लिया ना। सतयुग का इतना सारा धन कहाँ गंवाया? भक्ति में गँवाया ना। अच्छी तरह से अनुभव कर लिया ना। तो जब भी कोई ऐसे हलचल की परिस्थिति आती है तो अपने यादगार अचल घर को याद करो। जब यादगार ही अचल घर है तो मैं कैसे हलचल में आ सकती हूँ! ये तो सहज याद आयेगा ना।

एकरस स्थिति का अर्थ ही है कि एक द्वारा सर्व सम्बन्ध, सर्व प्राप्तियों के रस का अनुभव करना। तो अनुभव होता है कि बीच-बीच में और कोई सम्बन्ध भी खींचता है? जब सर्व सम्बन्ध एक द्वारा अनुभव होता है तो दूसरे सम्बन्ध में आकर्षण होने की तो बात ही नहीं है। सर्व सम्बन्ध का अनुभव है कि कोई-कोई सम्बन्ध का अनुभव है? सर्व सम्बन्ध से बाप को अपना बनाया है कि कोई सम्बन्ध किनारे रख दिया है? सर्व हैं कि एक-दो में अटेन्शन जाता है? कोई का भाई में, कोई का बच्चे में, कोई का पोत्रे में! नहीं? निभाना अलग चीज़ है, आकर्षित होना अलग चीज़ है। तो नष्टोमोहा हो? पाण्डवों को पैसे कमाने में मोह नहीं है? ट्रस्टी होकर कमाना अलग चीज़ है। लगाव से कमाना, मोह से कमाना अलग चीज़ है।

कभी धन में मोह जाता है? थोड़ा-थोड़ा जाता है? क्या होगा, कैसे होगा, जमा कर लें, कुछ कर लें, पता नहीं कितने वर्ष के बाद विनाश होता है, दस वर्ष लगते हैं या 50 वर्ष लगते हैं.. ये नहीं आता? नष्टोमोहा बनकर, ट्रस्टी बनकरके चलना और मोह से चलना कितना अन्तर है! नष्टोमोहा की निशानी क्या होगी? कभी कमाने में, धन सम्भालने में दु:ख की लहर नहीं आयेगी। कभी कम, कभी जयादा में दु:ख की लहर आती है? पोत्रा-धोत्रा थोड़ा बीमार हो गया तो दु:ख की लहर आती है? नष्टोमोहा हैं? कुछ भी हो जाये बेफ़्रिक हो? नष्टोमोहा अर्थात् दु:ख और अशान्ति का नाम-निशान नहीं। ऐसे हो या बनना है? तो एक बल, एक भरोसा अर्थात् जरा भी दु:ख के लहर की हलचल नहीं हो। सदा ये स्मृति स्वरूप हो कि सदा एक बल, एक भरोसे वाले हैं और आगे भी सदा रहेंगे। खुशी रहे कि मैं ही था, मैं ही हूँ और मैं ही बनूँगा। अच्छा!

ग्रुप नं. 3

स्थिति का आधार स्मृति है, स्मृति का परिवर्तन कर कर्म में श्रेष्ठता लाओ

सभी अपने को संगमयुगी पुरूषोत्तम आत्मायें अनुभव करते हो? पुरूषोत्तम अर्थात् पुरूषों में उत्तम पुरूष। तो अभी साधारण नहीं हो पुरूषोत्तम हो। क्योंकि ब्राह्मण अर्थात् श्रेष्ठ। ब्राह्मणों को सदा ऊंचा दिखाते हैं। मुख वंशावली दिखाते हैं ना। तो ब्राह्मण बन गये अर्थात् श्रेष्ठ बन गये। साधारण पुरूष आप पुरूषोत्तम आत्माओं की पूजा करते हैं क्योंकि ब्राह्मण अर्थात् पवित्र बन गये ना। तो पवित्रता की ही पूजा होती है। साधारण आत्मा भी पवित्रता को धारण करती है तो महान आत्मा कहलाती है। तो आप सब पवित्र आत्मायें हो ना कि मिक्स आत्मा हो? थोड़ी-थोड़ी अपवित्रता, थोड़ी-थोड़ी पवित्रता! नहीं। पवित्र आत्मा बन गये। तो पवित्रता ही श्रेष्ठता है। पवित्रता ही पूज्य है। तो ये नशा रहता है कि हम पुजारी से पूज्य बन गये? ब्राह्मणों की पवित्रता का गायन है। कोई भी शुभ कार्य होगा तो ब्राह्मणों से करायेंगे। अशुभ कार्य ब्राह्मणों से नहीं करायेंगे। अशुभ कार्य ब्राह्मण करें तो कहेंगे ये नाम का ब्राह्मण है, काम का नहीं। तो आप नामधारी हो या कामधारी? नामधारी ब्राह्मण तो बहुत हैं। लेकिन आप जैसा नाम वैसा काम करने वाले हो। साधारण आत्मा नहीं हो, विशेष आत्मा हो। ये खुशी है ना। कल साधारण थे और आज विशेष बन गये। तो विशेष आत्मा समझने से जैसी स्मृति होगी वैसी स्थिति होगी और जैसी स्थिति वैसे कर्म होंगे। चेक करो जब स्थिति कमज़ोर होती है तो कर्म कैसे होते हैं। कर्म में भी कमज़ोरी आ जायेगी और स्थिति शक्तिशाली तो कर्म भी शक्तिशाली होंगे। तो स्थिति का आधार है स्मृति। स्मृति खुशी की है तो स्थिति भी खुश। कर्म भी खुशी-खुशी से करेंगे। फाउन्डेशन है स्मृति। तो बाप ने स्मृति बदल ली। साधारण से विशेष आत्मा बने तो स्मृति चेंज हो गई। चाहे कर्म साधारण हों लेकिन साधारण कर्म में भी विशेषता हो। मानो खाना बना रहे हो तो ये तो साधारण कर्म है ना, सब करते हैं लेकिन आपका खाना बनाना और दूसरों के खाना बनाने में फर्क होगा ना। आपके याद का भोजन और साधारण भोजन में अन्तर है। वो प्रसाद है, वो खाना है। तो विशेषता आ गई ना। याद में जो खाना खाते हो या बनाते हो तो उसको ब्रह्मा भोजन कहते हैं। तो सदा याद रखना कि पुरूषोत्तम विशेष आत्मायें बन गये तो साधारण कर्म कर नहीं सकते।

ग्रुप नं. 4

सदा विघ्न विनाशक बनने के लिए अपने मस्तक पर परमात्म हाथ का अनुभव करो

बाम्बे में सबसे ज्यादा पूजा किसकी होती है? गणेश की। गणेश को विघ्न विनाशक कहते हैं। आप सब विघ्न विनाशक हो? कोई विघ्न के वश तो नहीं होते हो? विघ्न विनाशक कौन बनता है? जिसमें सर्वशक्तियाँ हैं वही विघ्न विनाशक है। तो सर्वशक्तियां आपका जन्म-सिद्ध अधिकार हैं। सदा ये नशा रखो कि मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ और सर्वशक्तियों को समय प्रमाण कार्य में लगाओ। ऐसे नहीं कि समय पर कार्य में नहीं लगाओ, समय बीत जाने के बाद सोचो कि ऐसे करना चाहिये था। तो सभी विघ्न विनाशक हो? फलक से कहो कि हम मास्टर विघ्न विनाशक हैं। कितने भी रूप से माया आये लेकिन आप नॉलेजफुल बनो। माया की भी नॉलेज है ना। अच्छी तरह से समझ गये हो या कभी घबरा जाते हो, नया रूप समझते हो। माया से घबराते हो? कभी हार, कभी वार-ऐसे तो नहीं? माया का जन्म कैसे होता है, पता है? जानते भी हो कि माया का जन्म ऐसे होता है फिर भी जन्म दे देते हो! माया से प्यार है क्या? तो नॉलेजफुल आत्मा कभी भी माया से हार नहीं खा सकती। मायाजीत का टाइटल है, माया से हार खाने वाले नहीं। बापदादा का सदा हाथ और साथ है तो सदा मायाजीत हैं। तो सदा साथ है या कभी अकेले भी हो जाते हो? कम्बाइन्ड रहते हो ना। अपने मस्तक पर सदा ही बाप की दुआओं का हाथ अनुभव करो। तो जिसके ऊपर परमात्म हाथ है वो विघ्न विनाशक होगा ना। जिसके ऊपर दुआओं का हाथ है वो सदा निश्चित और निश्चिन्त रहता है। सभी के मस्तक पर विजय का तिलक लगा हुआ है। यह अविनाशी तिलक है। तो विजय के तिलकधारी अर्थात् विघ्न विनाशक। सदा अमृतवेले विजय के तिलक को स्मृति में लाओ। भक्त भी रोज तैयार होकर तिलक जरूर लगायेंगे। आपका तो अविनाशी तिलक है ही।

सभी सदा खुश रहते हो या खुशी कभी कम होती है, कभी बढ़ती है? ब्राह्मण जीवन की खुराक खुशी है। तो सदा खुराक खाते हो या कभी-कभी खाते हो? खुश नसीब हैं और खुशी की खुराक खाने वाले हैं और खुशी बांटने वाले हैं - ये याद रहता है? दिल से निकलता है कि मेरे जैसा खुशनसीब और कोई हो नहीं सकता? सारे विश्व में और कोई है? लण्डन की महारानी वा अमेरिका का प्रेजीडेन्ट है? कोई नहीं? अगर लण्डन की रानी आपको ताज तख्त दे तो लेंगे? नहीं लेंगे? अभी भी ले लो, भविष्य में भी ले लेना। तख्त पर बैठेंगे तो ऑर्डर तो करेंगे ना। (बाबा का तख्त मिला है उस तख्त की जरूरत नहीं है) वो तख्त आजकल तख्त नहीं है, तख्ता है। इतना बेफ़्रिक होता है। और आप बेफ़्रिक बादशाह हो। ऐसी बेफ़्रिक जीवन, सारे कल्प में इस समय जो अनुभव करते हो वो और कोई युग में नहीं है। सतयुग में बेफ़्रिक होंगे लेकिन अभी आपको ज्ञान है कि फ़्रिक क्या है, बेफ़्रिक क्या है? वहाँ ज्ञान नहीं होगा।

बाम्बे वाले डबल बेफ़्रिक हो! क्योंकि बाम्बे वालों को पता है कि बाम्बे अगर गई तो हम तो ठीक ही रहेंगे। देखो ना हलचल होती है लेकिन ब्राह्मण तो सेफ होते हैं। योगयुक्त आत्मा स्वत: ही सेफ हो जाती है। तो बाम्बे वाले डरते तो नहीं हैं ना कि सागर आ जायेगा! पहले से ही नष्टोमोहा हो गये। अच्छा, बाम्बे वालों ने क्या नया प्लैन बनाया है? (कार यात्रा का नया बनाया है।) इससे माइक निकलेंगे ना? बाम्बे विश्व में बिजनेस में नम्बरवन है। तो ज्ञान की बिजनेस में कितना नम्बर है? वन नम्बर है ना। नम्बर टू तो चन्द्रवंश हो जायेगा। नम्बरवन सूर्यवंश। तो सूर्यवंशी हैं या चन्द्रवंशी? सबमें नम्बर है तो इसमें पीछे कैसे हो सकता है। बाम्बे वालों ने साकार पालना भी ली है। ये भी बाम्बे का भाग्य है। अभी भी निमित्त बनी हुई बाप समान आत्माओं की पालना मिल रही है ना। तो इसमें भी नम्बरवन हो। देखना, फिर कभी टू, कभी वन नहीं बनना। सदा नम्बरवन रहना। बाम्बे वालों में हिम्मत अच्छी है। सेवा के क्षेत्र में, हर कार्य में हिम्मत रखते हैं। और जो हिम्मत रखते हैं उसको बाप की गुप्त मदद स्वत: ही मिलती है। और मदद की निशानी है कि हर कार्य सहज होता है। तो सहज लगता है या कभी मुश्किल भी लगता है? मुश्किल को सहज बनाने वाले औरों की मुश्किल को मिटाने वाले हो। तो मुश्किल को सहज करने वाले ही विघ्न विनाशक हैं। अच्छा!

ग्रुप नं. 5

याद की शक्ति द्वारा सेकण्ड में मन-बुद्धि को एकाग्र करना और सेवा द्वारा खज़ानों को बढ़ाना-यह बैलेन्स ही ब्लैसिंग प्राप्त करने का साधन है

सदा याद और सेवा दोनों का बैलेन्स रखने वाले हो? क्योंकि याद से जो शक्तियों की वा गुणों की प्राप्ति होती है वो सेवा द्वारा औरों को देना है। तो दोनों ही अच्छी तरह से चेक करते हो? कि कभी सेवा ज्यादा होती तो योग कम, कभी योग जयादा तो सेवा कम-ऐसे तो नहीं होता? सेवा करने से, जो खज़ाने मिले हुए हैं वह बढ़ते हैं, तो बढ़ाने की विधि आती है ना? तो सेवा में होशियार हो या याद में होशियार हो? याद की शक्ति का अर्थ है कि जहाँ बुद्धि को लगाना चाहो, वहाँ लग जाये। ऐसी शक्ति है? जब चाहो, जहाँ चाहो, अपनी बुद्धि को लगा सकते हो या टाइम लगेगा? कितने टाइम में लगा सकते हो? कोई भी वायुमण्डल है लेकिन कैसे भी वायुमण्डल के बीच अपने मन को, बुद्धि को कितने समय में एकाग्र कर सकते हो? (सेकण्ड में) कहते हो या करते हो? कहना तो सहज है लेकिन एकाग्रता की शक्ति है वा नहीं है-वह समय पर मालूम पड़ता है। परिस्थिति हलचल की हो, वायुमण्डल तमोगुणी हो, माया अपने हिम्मत से अपना बनाने का प्रयत्न कर रही हो फिर सेकण्ड में एकाग्र हो सकते हो या टाइम लगेगा? ये अभ्यास सदा करते रहो तो समय पर शक्ति कार्य में ला सकते हो। इसको कहा जाता है जब चाहे, जहाँ चाहे वहाँ स्थित हो सकते हैं। कितना भी व्यर्थ संकल्पों का तूफान हो लेकिन सेकण्ड में तूफान आगे बढ़ने का तोहफा बन जाये। ऐसी कन्ट्रोलिंग पॉवर हो तो ऐसी शक्तिशाली आत्मा कभी ये संकल्प भी नहीं लायेगी कि चाहते तो नहीं, लेकिन हो जाता है। जो सोचा वो हुआ। ऐसे नहीं, सोचते हैं नहीं होना चाहिये और हो जाये। क्योंकि अगर समय पर कोई भी शक्ति काम में नहीं आई तो प्राप्ति के बजाय पश्चाताप करना पड़ता है। तो प्राप्ति स्वरूप बनो। बापदादा ने सभी आत्माओं को सर्वशक्तियाँ वर्से में दे दी। तो वर्से वाली चीज़ सदा याद रहती है। फलक से कहेंगे ना कि ये शक्तियाँ हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार हैं।

सदा ‘एक बाप दूसरा न कोई’ इसी अनुभव में रहते हो ना? बस एक है, कि दूसरा-तीसरा भी हो जाता है? एक बाप ही संसार बन गया। कोई आकर्षण नहीं, कोई कर्मबन्धन नहीं। अपने कोई कमज़ोर संस्कार का भी बन्धन नहीं? कोई कमज़ोर संस्कार हैं? कोई पुराना संस्कार अभी तक है? कभी थोड़ा रोब आता है?कभी छोटों के ऊपर रोब आता है? (क्रोध आता है) क्रोध तो रोब से भी बड़ा है। क्रोध आता है तो इसका अर्थ है कर्म का बन्धन है। पाण्डवों में क्रोध आता है और माताओं में मोह आता है। अभिमान भी आता है-मैं पुरूष हूँ, कभी बच्चों पर, कभी माताओं पर अभिमान आता है मैं बड़ा हूँ। अधिकार रखते हो कि ये क्यों किया! मेरी है, ये समझते हो? सेवा के साथी हैं, न कि मेरे का अधिकार है। मेरा समझने से ही क्रोध, अभिमान या मोह आता है। अगर मेरा नहीं तो क्रोध भी नहीं आयेगा। मातायें, बच्चों के ऊपर क्रोध करती हो? जब बहुत चंचलता करते हैं तो क्रोध नहीं करती?

जब बाप संसार है, मेरा बाबा है तो और सब मेरा-मेरा एक मेरे बाप में समा जाता है। तो अभी दिल में क्या आता है? मेरा या तेरा? जैसे भक्ति में कहते हैं तेरा लेकिन मानते हैं मेरा तो ऐसे तो नहीं करते ना। मेरापन ही बोझ है, तो बोझ को छोड़ना अच्छी बात है ना। तो सदा यह याद रखो कि हम याद और सेवा का बैलेन्स रखने वाले बाप के ब्लैसिंग के अधिकारी आत्मायें हैं।

ग्रुप नं. 6

सन्तुष्ट रहने का दृढ़ संकल्प लो तो सफलता सदा साथ रहेगी

सभी आवाज से परे रहना सहज अनुभव करते हो वा आवाज में आना सहज अनुभव करते हो? सहज क्या है? आवाज में आना या आवाज से परे होना? आवाज से परे होना अर्थात् अशरीरी स्थिति का अनुभव होना। तो शरीर के भान में आना जितना सहज है, उतना ही अशरीरी होना भी सहज है कि मेहनत करनी पड़ती है? सेकण्ड में आवाज में तो आ जाते हो लेकिन सेकण्ड में कितना भी आवाज में हो, चाहे स्वयं हो या वायुमण्डल आवाज का हो लेकिन सेकण्ड में फुल स्टॉप लगा सकते हो कि कॉमा लगेगी, फुल स्टॉप नहीं? इसको कहा जाता है फरिश्ता वा अव्यक्त स्थिति की अनुभूति में रहना, व्यक्त भाव से सेकण्ड में परे हो जाना। इसके लिये ये नियम रखा हुआ है कि सारे दिन में ट्रैफक ब्रेक का अभ्यास करो। ये क्यों करते हो? कि ऐसा अभ्यास पक्का हो जाये जो चारों ओर कितना भी आवाज का वातावरण हो लेकिन एकदम ब्रेक लग जाये। आत्मा का आदि वा अनादि लक्षण तो शान्त है, तो सेकण्ड में ऑर्डर हो कि अपने अनादि स्वरूप में स्थित हो जाओ तो हो सकते हो कि टाइम लगेगा?सुनाया था ना कि लगाना चाहें बिन्दी और लग जाये क्वेश्चन मार्क तो क्या होगा? इसको किस अवस्था का अभ्यास कहेंगे? सभी फरिश्ते स्थिति का अभ्यास करते हो? अभी और अभ्यास करना है कि जितना समय चाहे उतना समय उस विधि से स्थित हो जायें। अभी देखो कोई भी प्रकृति की आपदा या परिस्थिति की आपदा आती है तो अचानक आती है ना, और दिन प्रतिदिन अचानक यह प्रकृति अपनी हलचल बढ़ाती जाती है। यह कम नहीं होनी है, बढ़नी ही है। अचानक आपदा आ जाती है। तो ऐसे समय पर समाने वा समेटने की शक्ति की आवश्यकता है। और कहाँ भी बुद्धि नहीं जाये, बस बाप और मैं, बुद्धि को जहाँ लगाना चाहें वहाँ लग जाये। क्यों-क्या में नहीं जाये, ये क्या हुआ, ये कैसे होगा, होना तो नहीं चाहिये, हो कैसे गया-इसको ब्रेक कहेंगे? तो उड़ती कला के लिये ब्रेक बहुत पॉवर फुल चाहिये। जब पहाड़ी पर ऊंचे चढ़ते हैं तो बार-बार क्या कहते हैं कि ब्रेक चेक करो, ब्रेक चेक करो। तो ऊंची अवस्था में जा रहे हो ना तो बार-बार ये ब्रेक चेक करो। कोई भी संकल्प वा संस्कार निगेटिव से पॉजिटिव में परिवर्तन कर सकते हैं और कितने समय में कर सकते हैं? समय है एक सेकण्ड का और आप पांच सेकण्ड में करो तो क्या होगा? तो अटेन्शन इस परिवर्तन शक्ति का चाहिये। पहले स्वयं को परिवर्तन करो तब विश्व को परिवर्तन कर सकते हो। तो स्व-परिवर्तक बने हो? पहले है स्व-परिवर्तक उसके बाद है विश्व परिवर्तक। क्योंकि अनुभव होगा कि व्यर्थ संकल्प की गति बहुत फास्ट होती है। एक सेकण्ड में कितने व्यर्थ संकल्प चलते हैं, अनुभव है ना। फास्ट चलते हैं ना। तो ऐसे फास्ट गति के समय पॉवरफुल ब्रेक लगाकर परिवर्तन करने का अभ्यास चाहिये। तो आज के दिन फरिश्तेपन का अभ्यास किया? सहज अनुभव हुआ कि मेहनत लगी? अभी सर्व आत्मायें आप शान्ति-सुख देने वाली फरिश्ते आत्माओं को याद करती हैं कि कोई फरिश्ते आयें और वरदान देकर जायें। तो वो फरिश्ते कौन हैं? आप हो? नशा रहता है ना कि हम ही कल्प-कल्प की श्रेष्ठ आत्मायें हैं। कितने बार यह पार्ट बजाया है? याद है कि भूल गये? फरिश्ता स्वरूप कितना प्यारा है। क्योंकि फरिश्ता दाता होता है, लेवता नहीं होता है। तो देने वाले दाता हो ना कि लेकर देने वाले हो? बाप से लेना अलग बात है। और आत्मायें कुछ दें तो आप दो ऐसे तो नहीं? फरिश्ता अर्थात् सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना। तो सन्तुष्ट रहते हो कि कोई-कोई बात में असन्तुष्ट भी हो जाते हो?कुछ भी नीचे-ऊपर हो जाये, असन्तुष्ट होंगे? कोई इन्सल्ट कर दे तो भी सन्तुष्ट रहेंगे? कोई नीचे-ऊपर करने की कोशिश करे तो सन्तुष्ट रहेंगे? पक्का? कोई कमी हो जाये तो भी सन्तुष्ट रहेंगे? देखो, सोच-समझकर जवाब दो। कोई टीचर ने आपको कम पूछा, कम बोला तो सन्तुष्ट होंगे या असन्तुष्ट होंगे? रिकॉर्ड मंगायें? कुछ भी हो जाये, दाता के बच्चे दाता हैं तो किसी भी बात में असन्तुष्ट नहीं हो सकते। सन्तुष्टता ब्राह्मणों का विशेष लक्षण है। स्वयं से भी सन्तुष्ट और औरों से भी सन्तुष्ट। जो पार्ट मिला है उसमें सन्तुष्ट रहना ही आगे बढ़ना है। ऐसे सन्तुष्ट हो? मातायें सन्तुष्ट देवी हो ना? सन्तोषी मां का पूजन होता है, वो कौन हैं? आप ही हो ना। तो कुछ भी हो जाये अपनी विशेषता को सदा साथ रखो। अगर दृढ़ संकल्प है तो जहाँ दृढ़ता है वहाँ सफलता है ही। दृढ़ संकल्प रखो कि सन्तुष्टता को कभी छोड़ना नहीं है तो सफलता आपके सदा ही साथ रहेगी। संकल्प में भी दृढ़ता, बोल में भी दृढ़ता और कर्म में भी दृढ़ता। ऐसे नहीं कि संकल्प तो दृढ़ किया था लेकिन कर्म में थोड़ा नीचे-ऊपर हो गया। नहीं। इस वर्ष सदा सन्तुष्ट रहना अर्थात् सफल रहना, सफलता को नहीं छोड़ना है। कितना भी कड़ा पेपर आ जाये लेकिन सन्तुष्ट रहना है और सन्तुष्ट करना है। क्योंकि आपका टाइटल है विश्व कल्याणकारी।

जैसे आज के दिन को स्मृति दिवस सो समर्थ दिवस कहते हैं तो सारा वर्ष ही समर्थ दिवस मनाना। व्थर्थ समाप्त। दृढ़ संकल्प अर्थात् बहुत् तीव्र पुरूषार्थ के संकल्प वाले। तो पुरुषार्थी नहीं बनना, तीव्र पुरुषार्थी। अच्छा!

कितनी भी बड़ी कैसी भी परिस्थिति हो प्यार से, स्नेह से परिस्थिति रूपी पहाड़ भी परिवर्तन हो पानी समान हल्का बन सकता है। पत्थर को पानी बना सकते हो। कैसा भी माया का विकराल रूप वा रॉयल रूप सामना करे तो सेकण्ड में स्नेह के सागर में समा जाओ तो सामना करने की माया की शक्ति समाप्त हो जायेगी। आपके समाने की शक्ति छू-मन्त्र नहीं लेकिन शिव-मन्त्र बन जायेगी।